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लॉस एंजिल्स में अमेरिका की तरफ से आयोजित ‘समिट ऑफ अमेरिकाज’ (अमेरिका महाद्वीप के देशों का शिखर सम्मेलन) राष्ट्रपति जो बाइडन की प्रतिष्ठा के लिए एक झटका साबित हुआ है। खुद अमेरिकी मीडिया की टिप्पणियों में कहा गया है कि इस सम्मेलन ने लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई क्षेत्र में अमेरिका के घटते प्रभाव को साफ कर दिया है।
अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट लिखा है- ‘बाइडन ने इस शिखर सम्मेलन में दुनिया के इस हिस्से के नेताओं का मजमा जुटा कर भ्रष्टाचार, गरीबी, स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं, जलवायु परिवर्तन और विस्थापन से संघर्ष में अमेरिकी शक्ति का प्रदर्शन करने की उम्मीद की थी। लेकिन कई तानाशाह शासकों को आमंत्रित न करने के उनके फैसले का परिणाम हुआ कि कई अन्य देशों के नेताओं ने सम्मेलन का बहिष्कार कर दिया। गुरुवार को ये सम्मेलन उन नेताओं के साथ हुआ, जो यहां आए। लेकिन इस पर कूटनीतिक विफलता का साया मंडराता रहा। इससे राजनीतिक अस्थिरता, प्राकृतिक आपदाओं, और महामारी के बाद बने हालात से पीड़ित इस क्षेत्र में अमेरिकी भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं।’
कई नेताओं को नहीं किया आमंत्रित
बाइडन प्रशासन ने क्यूबा, निकरागुआ, और वेनेजुएला के नेताओं को इस सम्मेलन के लिए आमंत्रित नहीं किया। इसके विरोध में मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रेस मैनुएल लोपेज ओब्रादोर के साथ-साथ बोलिविया और होंडूरास के वामपंथी राष्ट्रपतियों ने इस आयोजन का बहिष्कार कर दिया। ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति एलेयेंद्रो गियामाटेई और एल सल्वाडोर के राष्ट्रपति नायिब बुकेले बाइडन प्रशासन के प्रति अपनी अन्य शिकायतों की वजह से सम्मेलन में नहीं आए। बाइडन प्रशासन ने पहले इन दोनों राष्ट्रपतियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
वेबसाइट एक्सियोस.कॉम ने अपनी एक टिप्पणी में लिखा है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो के अलावा लॉस एंजिल्स आए नेताओं में कोई ऐसा नहीं रहा, जिसे बाइडन अपना वैचारिक साथी बता सकें। सम्मेलन में ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सेनारो आए, जिनसे बाइडन ने मुलाकात की। इसको लेकर सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थकों में कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। कई डेमोक्रेटिक नेताओं ने कहा है कि बाइडन ने लोकतंत्र को अपनी नीति में सर्व प्रमुख मानने का वादा किया था। लेकिन उन्होंने लॉस एंजिल्स में बेहिचक बोल्सेनारो से हाथ मिलाया, जिन पर मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के हनन के गंभीर आरोप हैं।
लैटिन अमेरिका में वामपंथ
वेबसाइट एक्सियोस ने ध्यान दिलाया है कि लैटिन अमेरिका में इस समय झुकाव वामपंथ की तरफ है। अर्जेंटीना, चिली, और पेरू में हाल में वामपंथी नेता राष्ट्रपति चुने गए हैं, जिन्होंने नव-उदारवाद के खिलाफ संघर्ष का एलान कर रखा है। जबकि नव-उदारवाद अमेरिकी नीतियों का प्रमुख वैचारिक आधार है।
अब विशेषज्ञ यह सवाल उठा रहे हैं कि लॉस एंजिल्स समिट के आयोजन में बाइडन प्रशासन ने जितनी ऊर्जा और संसाधन लगाए, क्या यह उसके लायक साबित हुआ। बाइडन प्रशासन यह दिखाना चाहता था कि अपने पड़ोसी देशों के साथ उसका सहयोगपूर्ण रवैया है। जबकि इस शिखर सम्मेलन ने लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में चौड़ी हो रही वैचारिक खाई को सबके सामने ला दिया। अमेरिका में मेक्सिको की राजदूत रह चूकीं मार्था बार्सेना ने एक अमेरिकी अखबार से कहा- ‘इस सम्मेलन से इस महाद्वीप में मौजूद गहरे मतभेद जग-जाहिर हो गए हैँ। सम्मेलन में आए कई नेताओं ने भी अमेरिकी प्रभाव को चुनौती दी। इसका कारण यह है कि इस महाद्वीप में अमेरिकी प्रभाव काफी घट चुका है।’