मार्च के आखिर से अप्रैल तक चंबल की बालू में घड़ियालों ने अंडे दिए थे। एक नेस्ट में 25 से 60 अंडे थे। इनसे औसतन 32 बच्चे निकलते हैं। नेस्टिंग के समय पर वन विभाग ने जीपीएस से लोकेशन ट्रेस कर जाली लगाई थी ताकि जानवर अंडों को नष्ट ना कर सकें। रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि नेस्टों से सरसराहट की आवाज आने पर जाली हटा दी गई थी। बाह रेंज में रेहा, बरेंडा, कछियारा, मऊ, हरलालपुरा, नदगवां, महुआशाला आदि क्षेत्रों में 93 नेस्ट थे। हैचिंग का काम लगभग पूरा होने को है। अब मगरमच्छ की हैचिंग होनी है।
वन विभाग की निगाहें अब मगरमच्छ की हैचिंग पर टिक गईं हैं। नेस्टिंग प्वाइंट की निगरानी की जा रही है। मादा नेस्ट के आसपास विचरण करने लगी है। विभागीय अमला हैचिंग को लेकर उत्साहित है। साथ ही सतर्कता भी बरत रहा है।
आगरा के बाह क्षेत्र तक फैले चंबल क्षेत्र में प्रकृति अद्भुत छटा देखने को मिलती है। साफ-सुथरी चंबल नदी में लुप्तप्राय: जलीय जीवों का ठिकाना है। इसका स्वच्छ पानी घड़ियाल, मगरमच्छ, डाल्फिन, कछुओं के लिए संजीवनी का काम कर रहा है।
दुनिया में लुप्त प्राय स्थिति में पहुंचे घड़ियालों के लिए चंबल नदी संजीवनी बनी है। यहां घड़ियालों का संरक्षण वर्ष 1979 से हो रहा है, जबकि 5 अक्टूबर 2009 में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित कर संरक्षण के लिए चंबल को चुना गया था।
सात दुर्लभ प्रजाति के कछुओं का संरक्षण भी चंबल नदी में हो रहा है। साल प्रजाति के कछुए केवल चंबल नदी में बचे हैं। कछुआ संरक्षण केंद्र गढ़ायता की टीम के अलावा वन विभाग की टीम कछुओं के घोंसलों की रखवाली करती है।