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खन्ना (महोबा)। विकासखंड कबरई के ग्राम पंचायत खन्ना की अनुसूचित जाति की एक हजार की आबादी के लिए पानी का इंतजाम करना चुनौती बना है। अधिकांश महिलाओं का आधा दिन पानी की जुगाड़ में ही गुजर जाता है। सुबह से महिलाएं चूल्हा-चौका छोड़कर दो किमी दूर स्थित चंद्रावल नदी के गड्ढ़ों से पानी लाने को मजबूर हैं। पुरुष भी साइकिलों से पानी ढोते नजर आए। मोहल्ले में भेजे जा रहे दो टैंकरों से सभी को पानी नहीं मिल पा रहा है। जिससे उनका घरेलू कामकाज प्रभावित हो रहा है।
15 हजार की आबादी वाले ग्राम पंचायत खन्ना का नगरी मोहल्ला तीन माह से भीषण पेयजल संकट से जूझ रहा है। चंद्रावल नदी में गड्ढे खोदकर पानी ला रहे ग्रामीणों की समस्या को अमर उजाला ने 14 जून के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया था। जिसके बाद ग्राम पंचायत ने मोहल्ले में दो टैंकरों से आपूर्ति शुरू कराई थी लेकिन यह टैंकर नाकाफी साबित हो रहे हैं।
शुक्रवार की सुबह टैंकर रामकिशोर के दरवाजे पर पहुंचा। जहां पानी भरने को लेकर होड़ मच गई। अरविंद, नीतू, मीरा, शिवदेेवी समेत छह से अधिक लोगों को एक बूंद भी पानी नहीं मिला। दोपहर में भेजे गए दूसरे टैंकर से भी उन्हीं लोगों ने दोबारा पानी भर लिया। जिससे अधिकांश लोग रह गए। शाम के समय चंद्रावल नदी में खुदे गड्ढों से छह से अधिक महिलाएं पानी भरते नजर आईं। दो किमी दूर से पानी लाने में लोगों का आधा दिन बर्बाद हो रहा है। जिससे उनके घरेलू व बाजार से संबंधित काम नहीं हो पा रहे हैं।
प्रहलाद बताते हैं कि उनके परिवार में सात सदस्य हैं। प्रतिदिन15 से 16 डिब्बा पानी लगता है। वह दो किमी दूर से साइकिल से पानी लाते हैं। एक बार आने-जाने में एक घंटे से अधिक का समय लगता है। दिन में चार बार वह पानी लाते हैं, जिससे उनका आधा दिन पानी की जुगाड़ में ही निकल जाता है।
मीरा बताती हैं कि मोहल्ले में दो बार अलग-अलग समय पर टैंकर आता है। पहले से दरवाजे पर बैठकर टैंकर का इंतजार करते हैं। तब दो डिब्बा पानी ही मिल पाता है। अधिक पानी की खपत होने के चलते वह चूल्हा-चौका व अन्य काम छोड़कर चंद्रावल नदी से पानी लाती हैं। जिससे तीन घंटे का समय बर्बाद हो जाता है।
नीतू कहती हैं कि नगरी मोहल्ले में पेयजल की भीषण समस्या है। पूरे दिन में यदि भरपूर पानी का इंतजाम हो गया तो वह समझती है कि उन्होंने कोई जंग जीत ली है। चंद्रावल नदी से पानी लाने में तीन से चार घंटे बर्बाद हो जाते हैं। थकान हो जाने पर घर का काम भी पूरा नहीं हो पाता है।
खन्ना (महोबा)। विकासखंड कबरई के ग्राम पंचायत खन्ना की अनुसूचित जाति की एक हजार की आबादी के लिए पानी का इंतजाम करना चुनौती बना है। अधिकांश महिलाओं का आधा दिन पानी की जुगाड़ में ही गुजर जाता है। सुबह से महिलाएं चूल्हा-चौका छोड़कर दो किमी दूर स्थित चंद्रावल नदी के गड्ढ़ों से पानी लाने को मजबूर हैं। पुरुष भी साइकिलों से पानी ढोते नजर आए। मोहल्ले में भेजे जा रहे दो टैंकरों से सभी को पानी नहीं मिल पा रहा है। जिससे उनका घरेलू कामकाज प्रभावित हो रहा है।
15 हजार की आबादी वाले ग्राम पंचायत खन्ना का नगरी मोहल्ला तीन माह से भीषण पेयजल संकट से जूझ रहा है। चंद्रावल नदी में गड्ढे खोदकर पानी ला रहे ग्रामीणों की समस्या को अमर उजाला ने 14 जून के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया था। जिसके बाद ग्राम पंचायत ने मोहल्ले में दो टैंकरों से आपूर्ति शुरू कराई थी लेकिन यह टैंकर नाकाफी साबित हो रहे हैं।
शुक्रवार की सुबह टैंकर रामकिशोर के दरवाजे पर पहुंचा। जहां पानी भरने को लेकर होड़ मच गई। अरविंद, नीतू, मीरा, शिवदेेवी समेत छह से अधिक लोगों को एक बूंद भी पानी नहीं मिला। दोपहर में भेजे गए दूसरे टैंकर से भी उन्हीं लोगों ने दोबारा पानी भर लिया। जिससे अधिकांश लोग रह गए। शाम के समय चंद्रावल नदी में खुदे गड्ढों से छह से अधिक महिलाएं पानी भरते नजर आईं। दो किमी दूर से पानी लाने में लोगों का आधा दिन बर्बाद हो रहा है। जिससे उनके घरेलू व बाजार से संबंधित काम नहीं हो पा रहे हैं।
प्रहलाद बताते हैं कि उनके परिवार में सात सदस्य हैं। प्रतिदिन15 से 16 डिब्बा पानी लगता है। वह दो किमी दूर से साइकिल से पानी लाते हैं। एक बार आने-जाने में एक घंटे से अधिक का समय लगता है। दिन में चार बार वह पानी लाते हैं, जिससे उनका आधा दिन पानी की जुगाड़ में ही निकल जाता है।
मीरा बताती हैं कि मोहल्ले में दो बार अलग-अलग समय पर टैंकर आता है। पहले से दरवाजे पर बैठकर टैंकर का इंतजार करते हैं। तब दो डिब्बा पानी ही मिल पाता है। अधिक पानी की खपत होने के चलते वह चूल्हा-चौका व अन्य काम छोड़कर चंद्रावल नदी से पानी लाती हैं। जिससे तीन घंटे का समय बर्बाद हो जाता है।
नीतू कहती हैं कि नगरी मोहल्ले में पेयजल की भीषण समस्या है। पूरे दिन में यदि भरपूर पानी का इंतजाम हो गया तो वह समझती है कि उन्होंने कोई जंग जीत ली है। चंद्रावल नदी से पानी लाने में तीन से चार घंटे बर्बाद हो जाते हैं। थकान हो जाने पर घर का काम भी पूरा नहीं हो पाता है।