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म्यांमार के ग्रामीण और कई शहरी इलाकों में सैनिक शासन की तरफ से प्रायोजित हिंसा तेजी से फैल रही है। खबर है कि सैनिक शासन विरोधी हथियारबंद गुटों के हमलों के जवाब में सेना ने कई जगहों पर बस्तियों में आग लगा दी। इसके अलावा जिन इलाकों को सैनिक शासन ने ‘ड्राइ ज़ोन’ घोषित किया है, वहां हवाई बमबारी भी की गई है। ऐसे ज्यादातर इलाके देश के दक्षिण-पूर्वी भाग में हैं।
एक ताजा खबर के मुताबिक सैनिक शासन यानी स्टेट ऐडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल (एसएसी) ने ऐसे कुछ गुप्त दस्ते तैयार किए हैं, जिनका काम बागी गुटों पर हमले करना और उनसे सहानुभूति रखने वाली आबादी को भयभीत करना है। इन दस्तों को ‘थवे दोउत आह प्वे’ (रक्त पिपासु समूह) के नाम से जाना जा रहा है। बताया जाता है कि ये खबर मंडाले शहर के आसपास सक्रिय है। आरोप है कि उन्होंने आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) से जुड़े रहे लोगों का अपहरण किया है, उन्हें यातना दी है और कई एनएलडी समर्थकों को मार डाला है।
वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले महीने एनएलडी समर्थक खिन मुआंग थिन और उनकी पत्नी खा खा को बुरी तरह घायल अवस्था में सड़क के किनारे फेंक दिया गया था। उन शरीर पर ‘रक्त पिपासु’ ग्रुप की पट्टी बंधी हुई थी। खिन मुआंग की बाद में मौत हो गई, जबकि इलाज के बाद उनकी पत्नी की जान बच गई। खबरों के मुताबिक इसी तरह के समूह यंगून और तौंगयी में भी सक्रिय हैं।
विश्लेषकों के मुताबिक ये ताजा खबरें देश में लड़ाई का एक नया खतरनाक मोर्चा खुल जाने का संकेत हैं। देश में सैनिक शासन विरोधी कई हथियारबंद गुट इस समय सक्रिय हैं। इनमें पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (पीडीएफ) सबसे अधिक चर्चित है। इस समूह ने एसएसी से जुड़े कई अधिकारियों और सेना समर्थक लोगों या मुखबिरों पर हमले किए हैं। अब ऐसा लगता है कि पीडीएफ और उस जैसे दूसरे गुटों से निपटने के लिए सैनिक शासकों ने भी वैसा ही तरीका अपना लिया है।
बीते अप्रैल में एसएसी के प्रवक्ता जाव मिन तुन ने एक नया ‘सार्वजनिक सुरक्षा सिस्टम’ अपनाए जाने का एलान किया था। उससे संकेत मिला था कि सैनिक शासक बागियों के खिलाफ हथियारों और वित्तीय मदद देंगे।
समझा जाता है कि अप्रैल के बाद से ही सैनिक शासकों ने तथाकथित नए पब्लिक सिक्युरिटी सिस्टम पर अमल शुरू कर दिया। इसके तहत बनाए गए गुटों को कई तरह के काम दिए गए हैं। उनमें स्थानीय खुफिया जानकारी इकट्ठी करना, सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों में मददगार बनना, और धमकियों और हिंसा के जरिए स्थानीय जन समूहों को आतंकित करना शामिल है।
ये पहला मौका नहीं है, जब म्यांमार के सैनिक शासकों ने इस तरह के तरीके अपनाए हों। ऐसा ही तरीका साल 2000 के आसपास भी तत्कालीन सैनिक शासन ने अपनाया था। तब ऐसे गिरोह बनाए गए थे, जिन्होंने सैनिक शासन विरोधी समूहों पर भयंकर कहर ढाया। इसके पहले 1960 के दशक में भी म्यांमार की सेना ने देश के कुछ हिस्सों में ‘पीपुल्स मिलिशिया सिस्टम’ लागू किया था।