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Truth Of Indian Economy: Share Of The Unorganized Sector In Gst Tax Collection Is Negligible – Indian Economy: अर्थव्यवस्था की हालत का पूरा सच, केवल जीएसटी टैक्स कलेक्शन बढ़ने से नहीं दिखती ये तस्वीर

News Desk by News Desk
August 6, 2022
in Business
0
Truth Of Indian Economy: Share Of The Unorganized Sector In Gst Tax Collection Is Negligible – Indian Economy: अर्थव्यवस्था की हालत का पूरा सच, केवल जीएसटी टैक्स कलेक्शन बढ़ने से नहीं दिखती ये तस्वीर


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18% Gst Will Be Applicable On Renting A House, Know Are You Also In The Purview Of This New Change? – Gst New Rule: किराए का घर लेने पर लगेगा 18% जीएसटी, जानें क्या आप भी हैं इस नए बदलाव के दायरे में?

Increase In Corporate Tax Collection For The Third Consecutive Year, The It Department Said By Tweeting – Corporate Tax: कॉरपोरेट टैक्स कलेक्शन मे लगातार तीसरे वर्ष वृद्धि, आयकर विभाग ने ट्वीट कर बताया

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डॉलर की तुलना में रूपया लगातार मजबूत हो रहा है। 18 जुलाई को रिकॉर्ड 80.03 रूपया प्रति डॉलर तक गिरने के बाद आज यह 78.83 रूपया प्रति डॉलर तक मजबूत हो चुका है। वस्तु एवं उत्पाद कर (GST) संग्रह भी पिछले कई महीनो से रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। पिछले अप्रैल महीने में जीएसटी कर संग्रह रिकॉर्ड 1.5 लाख करोड़ रूपये के पार पहुंच गया, जो मई में 1.41 लाख करोड़ रूपये, जून में 1.44 लाख करोड़ रूपये और जुलाई में 1.48 लाख करोड़ रूपये रहा। केंद्र की राय है कि लगातार रिकॉर्ड जीएसटी टैक्स संग्रह यह बता रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है और चिंता करने की कोई बात नहीं है। लेकिन अर्थशास्त्रियों की राय है कि अर्थव्यवस्था की यह तस्वीर एकपक्षीय है। जीएसटी कर संग्रह का 95 फीसदी हिस्सा संगठित क्षेत्र की बड़ी-बड़ी कंपनियों के माध्यम से आता है, और केवल पांच फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र से आता है। जीएसटी का रिकॉर्ड कलेक्शन यह बता रहा है कि संगठित क्षेत्र अच्छी प्रगति कर रहा है, लेकिन इस तस्वीर में असंगठित क्षेत्र शामिल नहीं है जिसमें देश की सबसे ज्यादा आबादी काम करती है और अपनी आजीविका के लिए उस पर निर्भर करती है।

अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार ने अमर उजाला को बताया कि हमारे देश में लगभग छः हजार बड़ी कंपनियां (लार्ज स्केल) काम करती हैं। जबकि इसकी तुलना में लघु और मध्यम स्तर की लगभग छः लाख कंपनियां और छः करोड़ माइक्रो यूनिट काम कर रही हैं। सरकार के आंकड़ों में जो तस्वीर है, वह बड़ी और कुछ मध्यम स्तर कंपनियों का ही हिस्सा शामिल है, जबकि छः करोड़ माइक्रो यूनिट, जिसमें एक से लेकर दस तक मजदूर काम कर रहे हैं, उनका हिस्सा जीएसटी में न के बराबर शामिल है। नोटबंदी, जीएसटी के बाद कोरोना का सबसे ज्यादा नकारात्मक असर इसी सेक्टर पर पड़ा है जिसके कारण देश में बेरोजगारी बढ़ी है और नौकरियां न होने के कारण लोगों की खरीद क्षमता में कमी आई है।

किसकी कितनी हिस्सेदारी
देश की कुल अर्थव्यवस्था यानी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 55 प्रतिशत हिस्सा संगठित क्षेत्र का माना जाता है, जबकि असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत है। असंगठित क्षेत्र के 45 फीसदी में 14 प्रतिशत हिस्सा कृषि से और बाकी 31 प्रतिशत हिस्सा गैर-कृषि कार्यों से आता है। अर्थव्यवस्था के आकार और नौकरियों के देने की क्षमता के आधार पर देखें तो बड़ी विषमता सामने आती है। 55 फीसदी आर्थिक क्षमता (GDP) वाले संगठित क्षेत्र में काम करने वालों की हिस्सेदारी कुल कामगरों की केवल छः फीसदी के करीब है, जबकि 45 फीसदी जीडीपी वाले असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या 94 प्रतिशत के करीब है।

 इस 94 फीसदी में लगभग आधे यानी 47 फीसदी कृषि या उससे जुड़े क्षेत्र में काम करते हैं तो बाकी के 47 फीसदी गैर-कृषि कार्यों में लगे हैं। अर्थशास्त्रियों की राय है कि सबसे ज्यादा मार इसी असंगठित क्षेत्र के लोगों पर पड़ी है जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ रही है, लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं है, लिहाजा उनके लिए जीवन चलाना मुश्किल हो रहा है। इससे बाजार में आवश्यक वस्तुओं की मांग में कमी आएगी और बाजार सुस्ती के कुचक्र में फंस सकता है।

विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट भी नहीं दिखा रही पूरा सच
प्रो. अरूण कुमार के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था का अनुमान लगाते समय अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां जैसे  आईएमएफ (IMF), एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) और ब्लूमबर्ग भी सरकार के ही आंकड़ों पर भरोसा करती हैं। देश की अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर जांचने के लिए न तो उनके पास कोई अपना मैकेनिज्म होता है और न ही (केंद्र के साथ शर्तों के कारण) उनके पास ऐसा करने का अधिकार होता है। लिहाजा उनकी रिपोर्ट सरकार के द्वारा दिए गए आंकड़ों पर ही निर्भर करती है। यही कारण है कि इन संस्थाओं की रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था का पूरा सच सामने नहीं आता।
आईएमएफ ने अनुमान लगाया है कि 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था सात फीसदी से कुछ ज्यादा की दर से आगे बढ़ सकती है। लेकिन चूंकि, यह निष्कर्ष उन्हीं आंकड़ों पर निकाले जाते हैं जिन्हें उनके सामने पेश किया जाता है, इसमें पूरी सच्चाई सामने आने की संभावना कम है। पूर्व वित्त मंत्री अरूण जेटली स्वयं मानते थे कि कर ढांचे के सही प्रारूप के न होने के कारण जीएसटी में संगठित क्षेत्र की भागीदारी ही सबसे ज्यादा (95 प्रतिशत) है और बड़ा असंगठित क्षेत्र इससे अछूता रह जाता है, माना जा सकता है कि अर्थव्यवस्था की एक बड़ी तस्वीर सामने आना बाकी है। अर्थशास्त्रियों की राय है कि यदि लघु, मध्यम और माइक्रो यूनिट की असली तस्वीर शामिल कर ली जाएगी तो पता चलेगा कि अर्थव्यवस्था बेहद कमजोर हालत में आ चुकी है।  

असली मानक जिस पर देश हो रहा पीछे
देश का व्यापार असंतुलन (TRADE DEFICIT) लगातार बढ़ रहा है। इसका अर्थ है कि निर्यात की तुलना में आयात बढ़ रहा है। अर्थव्यवस्था के हिसाब से इसे ठीक नहीं माना जाता। हालिया जारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई माह में एक्सपोर्ट में 0.76 प्रतिशत की कमी आई है। यह घटकर 37.24 बिलियन डॉलर हो गया है, जबकि इसी दौरान आयात 44 फीसदी बढ़कर 66.26 बिलियन डॉलर हो गया है। इसका एक बड़ा कारण डॉलर के मुकाबले रूपये में तेज गिरावट भी हो सकती है। चूंकि, अमेरिका, यूरोप, चीन सहित अनेक देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है, महंगाई ने इन देशों में भी लोगों को खर्च में कटौती करने को मजबूर किया है, इससे उनके द्वारा आयात में कटौती की जा सकती है जिससे हमारे निर्यात पर और ज्यादा बुरा असर पड़ सकता है। यह अर्थव्यवस्था पर और ज्यादा नकारात्मक असर डालेगा।   

 क्यों बढ़ रही कंपनियों की आय
यहां पर एक सवाल किया जा सकता है कि यदि देश की अर्थव्यवस्था संकट में है तो बड़ी-बड़ी कंपनियों का कैप बढ़ता क्यों जा रहा है। इसका उत्तर भी इसी व्यवस्था में छिपा है। चूंकि, नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना के कारण माइक्रो यूनिट कंपनियां अभी भी अपनी पहले की अवस्था में नहीं आ पाई हैं और उनमें उत्पादन बहुत कम हो रहा है, लिहाजा मांग के लिए लोग बड़ी कंपनियों के उत्पाद खरीद रहे हैं। इससे बड़ी कंपनियों के माल की बिक्री में बढ़ोतरी हो रही है और उनका आकार बढ़ता जा रहा है, लेकिन बड़ी कंपनियां छोटी-छोटी कंपनियों के खत्म होने के आधार पर आगे बढ़ रही हैं, यह तस्वीर सामने पेश  नहीं की जा रही है।

पांच फीसदी जीएसटी और तोड़ेगा कमर
केंद्र सरकार ने नॉन-लेबल्ड प्री पैकेज्ड वस्तुओं के ऊपर पांच फीसदी का जीएसटी लगाने का निर्णय किया है। इस कैटेगरी में केवल वही उत्पाद आएंगे जिन्हें स्थानीय स्तर के बाजारों में बनाया जाता है और स्थानीय स्तर के बाजारों में ही बेचा जाता है। अब तक जीएसटी कैटेगरी में न आने के कारण ये उत्पाद सस्ते थे, कुछ पैसे बचाने की लालच में लोग इन्हें खरीदते थे, लिहाजा इनका काम चल जाता था। लेकिन जीएसटी टैक्स लगने के कारण ये उत्पाद भी महंगे होकर ब्रांडेड कंपनियों के आसपास आ जाएंगे। यदि थोड़ा-बहुत अंतर रहा भी तो उपभोक्ता थोड़ा ज्यादा मूल्य चुकाकर ब्रांडेड माल खरीदना पसंद करेंगे। इससे माइक्रो सेक्टर और ज्यादा कमजोर होगा और बेकारी बढ़ेगी।

विस्तार

डॉलर की तुलना में रूपया लगातार मजबूत हो रहा है। 18 जुलाई को रिकॉर्ड 80.03 रूपया प्रति डॉलर तक गिरने के बाद आज यह 78.83 रूपया प्रति डॉलर तक मजबूत हो चुका है। वस्तु एवं उत्पाद कर (GST) संग्रह भी पिछले कई महीनो से रिकॉर्ड ऊंचाई पर है। पिछले अप्रैल महीने में जीएसटी कर संग्रह रिकॉर्ड 1.5 लाख करोड़ रूपये के पार पहुंच गया, जो मई में 1.41 लाख करोड़ रूपये, जून में 1.44 लाख करोड़ रूपये और जुलाई में 1.48 लाख करोड़ रूपये रहा। केंद्र की राय है कि लगातार रिकॉर्ड जीएसटी टैक्स संग्रह यह बता रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है और चिंता करने की कोई बात नहीं है। लेकिन अर्थशास्त्रियों की राय है कि अर्थव्यवस्था की यह तस्वीर एकपक्षीय है। जीएसटी कर संग्रह का 95 फीसदी हिस्सा संगठित क्षेत्र की बड़ी-बड़ी कंपनियों के माध्यम से आता है, और केवल पांच फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र से आता है। जीएसटी का रिकॉर्ड कलेक्शन यह बता रहा है कि संगठित क्षेत्र अच्छी प्रगति कर रहा है, लेकिन इस तस्वीर में असंगठित क्षेत्र शामिल नहीं है जिसमें देश की सबसे ज्यादा आबादी काम करती है और अपनी आजीविका के लिए उस पर निर्भर करती है।

अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार ने अमर उजाला को बताया कि हमारे देश में लगभग छः हजार बड़ी कंपनियां (लार्ज स्केल) काम करती हैं। जबकि इसकी तुलना में लघु और मध्यम स्तर की लगभग छः लाख कंपनियां और छः करोड़ माइक्रो यूनिट काम कर रही हैं। सरकार के आंकड़ों में जो तस्वीर है, वह बड़ी और कुछ मध्यम स्तर कंपनियों का ही हिस्सा शामिल है, जबकि छः करोड़ माइक्रो यूनिट, जिसमें एक से लेकर दस तक मजदूर काम कर रहे हैं, उनका हिस्सा जीएसटी में न के बराबर शामिल है। नोटबंदी, जीएसटी के बाद कोरोना का सबसे ज्यादा नकारात्मक असर इसी सेक्टर पर पड़ा है जिसके कारण देश में बेरोजगारी बढ़ी है और नौकरियां न होने के कारण लोगों की खरीद क्षमता में कमी आई है।

किसकी कितनी हिस्सेदारी

देश की कुल अर्थव्यवस्था यानी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 55 प्रतिशत हिस्सा संगठित क्षेत्र का माना जाता है, जबकि असंगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 45 प्रतिशत है। असंगठित क्षेत्र के 45 फीसदी में 14 प्रतिशत हिस्सा कृषि से और बाकी 31 प्रतिशत हिस्सा गैर-कृषि कार्यों से आता है। अर्थव्यवस्था के आकार और नौकरियों के देने की क्षमता के आधार पर देखें तो बड़ी विषमता सामने आती है। 55 फीसदी आर्थिक क्षमता (GDP) वाले संगठित क्षेत्र में काम करने वालों की हिस्सेदारी कुल कामगरों की केवल छः फीसदी के करीब है, जबकि 45 फीसदी जीडीपी वाले असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या 94 प्रतिशत के करीब है।

 इस 94 फीसदी में लगभग आधे यानी 47 फीसदी कृषि या उससे जुड़े क्षेत्र में काम करते हैं तो बाकी के 47 फीसदी गैर-कृषि कार्यों में लगे हैं। अर्थशास्त्रियों की राय है कि सबसे ज्यादा मार इसी असंगठित क्षेत्र के लोगों पर पड़ी है जिसके कारण बेरोजगारी बढ़ रही है, लोगों के पास आय का कोई साधन नहीं है, लिहाजा उनके लिए जीवन चलाना मुश्किल हो रहा है। इससे बाजार में आवश्यक वस्तुओं की मांग में कमी आएगी और बाजार सुस्ती के कुचक्र में फंस सकता है।

विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट भी नहीं दिखा रही पूरा सच

प्रो. अरूण कुमार के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था का अनुमान लगाते समय अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां जैसे  आईएमएफ (IMF), एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) और ब्लूमबर्ग भी सरकार के ही आंकड़ों पर भरोसा करती हैं। देश की अर्थव्यवस्था की सही तस्वीर जांचने के लिए न तो उनके पास कोई अपना मैकेनिज्म होता है और न ही (केंद्र के साथ शर्तों के कारण) उनके पास ऐसा करने का अधिकार होता है। लिहाजा उनकी रिपोर्ट सरकार के द्वारा दिए गए आंकड़ों पर ही निर्भर करती है। यही कारण है कि इन संस्थाओं की रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था का पूरा सच सामने नहीं आता।

आईएमएफ ने अनुमान लगाया है कि 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था सात फीसदी से कुछ ज्यादा की दर से आगे बढ़ सकती है। लेकिन चूंकि, यह निष्कर्ष उन्हीं आंकड़ों पर निकाले जाते हैं जिन्हें उनके सामने पेश किया जाता है, इसमें पूरी सच्चाई सामने आने की संभावना कम है। पूर्व वित्त मंत्री अरूण जेटली स्वयं मानते थे कि कर ढांचे के सही प्रारूप के न होने के कारण जीएसटी में संगठित क्षेत्र की भागीदारी ही सबसे ज्यादा (95 प्रतिशत) है और बड़ा असंगठित क्षेत्र इससे अछूता रह जाता है, माना जा सकता है कि अर्थव्यवस्था की एक बड़ी तस्वीर सामने आना बाकी है। अर्थशास्त्रियों की राय है कि यदि लघु, मध्यम और माइक्रो यूनिट की असली तस्वीर शामिल कर ली जाएगी तो पता चलेगा कि अर्थव्यवस्था बेहद कमजोर हालत में आ चुकी है।  

असली मानक जिस पर देश हो रहा पीछे

देश का व्यापार असंतुलन (TRADE DEFICIT) लगातार बढ़ रहा है। इसका अर्थ है कि निर्यात की तुलना में आयात बढ़ रहा है। अर्थव्यवस्था के हिसाब से इसे ठीक नहीं माना जाता। हालिया जारी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई माह में एक्सपोर्ट में 0.76 प्रतिशत की कमी आई है। यह घटकर 37.24 बिलियन डॉलर हो गया है, जबकि इसी दौरान आयात 44 फीसदी बढ़कर 66.26 बिलियन डॉलर हो गया है। इसका एक बड़ा कारण डॉलर के मुकाबले रूपये में तेज गिरावट भी हो सकती है। चूंकि, अमेरिका, यूरोप, चीन सहित अनेक देशों की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है, महंगाई ने इन देशों में भी लोगों को खर्च में कटौती करने को मजबूर किया है, इससे उनके द्वारा आयात में कटौती की जा सकती है जिससे हमारे निर्यात पर और ज्यादा बुरा असर पड़ सकता है। यह अर्थव्यवस्था पर और ज्यादा नकारात्मक असर डालेगा।   

 क्यों बढ़ रही कंपनियों की आय

यहां पर एक सवाल किया जा सकता है कि यदि देश की अर्थव्यवस्था संकट में है तो बड़ी-बड़ी कंपनियों का कैप बढ़ता क्यों जा रहा है। इसका उत्तर भी इसी व्यवस्था में छिपा है। चूंकि, नोटबंदी, जीएसटी और कोरोना के कारण माइक्रो यूनिट कंपनियां अभी भी अपनी पहले की अवस्था में नहीं आ पाई हैं और उनमें उत्पादन बहुत कम हो रहा है, लिहाजा मांग के लिए लोग बड़ी कंपनियों के उत्पाद खरीद रहे हैं। इससे बड़ी कंपनियों के माल की बिक्री में बढ़ोतरी हो रही है और उनका आकार बढ़ता जा रहा है, लेकिन बड़ी कंपनियां छोटी-छोटी कंपनियों के खत्म होने के आधार पर आगे बढ़ रही हैं, यह तस्वीर सामने पेश  नहीं की जा रही है।

पांच फीसदी जीएसटी और तोड़ेगा कमर

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